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बिहार महागठबंधन संकट: सीट बंटवारा से लेकर मेनिफेस्टो तक क्यों भिड़ीं RJD और कांग्रेस?

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बिहार महागठबंधन संकट: सीट बंटवारा से लेकर मेनिफेस्टो तक क्यों भिड़ीं RJD और कांग्रेस?

बिहार महागठबंधन संकट: सीट बंटवारा से लेकर मेनिफेस्टो तक क्यों भिड़ीं RJD और कांग्रेस?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी में विपक्षी मोर्चा महागठबंधन इस बार रणनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। RJD और कांग्रेस सहित अन्य दलों के बीच सेट-साझा, प्रचार अभियान तालमेल, और मेनिफेस्टो एवं साझा एजेंडा को लेकर स्पष्ट मतभेद सामने आ रहे हैं। इन मतभेदों ने केवल मीडिया में सुर्खियाँ नहीं बटोरी हैं, बल्कि चुनाव मैदान में गठबंधन की कार्यात्मक एकता को भी कमजोर कर रहे हैं।


सीट-साझा विवाद : “पहले लड़ाई सीटों पर”

सबसे पहला विवाद क्षेत्र है सीट-साझा (seat sharing)। महागठबंधन के भीतर RJD ने बड़ी संख्या में सीटों का दावा किया है, जबकि कांग्रेस भी कम नहीं पीछे है। उदाहरण के तौर पर, गांवस्तर और जिला-स्तर पर RJD और कांग्रेस दोनों ने टकराव के संकेत दिखाए हैं—कुछ सीटों पर दोनों ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जो सीधे एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध जैसा स्वरूप ले रहा है।

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उदाहरण के लिए:

  • “संघर्ष में है गठबंधन” — ऐसा कहा गया है कि कुछ विधानसभाओं में दोनों पार्टियों ने उम्मीदवार फील्ड किए हैं।

  • साझेदारी फाइनल नहीं होने की वजह से दोपक्षीय मुकाबले संभव हो गए हैं।

  • कांग्रेस की प्रतिक्रिया है कि मुद्दे जल्द सुलझ जाएंगे, लेकिन समय तेजी से समाप्त हो रहा है।

यह स्थिति तब बन गई है जब चुनाव फिलहाल बहुत नज़दीक है। समय आने से पहले ही जब सीट-मुटाव नहीं हो पाया है, तो प्रचार-मंच पर भी गठबंधन की कमजोरी उजागर हुई है। इस प्रकार, “पहले सीटों पर लड़ाई” की बात अब बन चुकी है एक वास्तविक विवाद में।


अब प्रचार अभियान में रार : “अब कैंपेन पर रार”

जब सीट-विवाद का हल नहीं हुआ, तब उसकी चमड़ी प्रचार अभियान में उतर आई है। अब महागठबंधन के अंदर प्रचार-रणनीति, उम्मीदवार चयन, प्रचार सामग्री एवं साझा मंच निर्धारण पर भी गहरी दरार देखने को मिल रही है।

विश्लेषण बताते हैं कि:

  • अलग-अलग दल अपने अभियान को अलग दिशा दे रहे हैं।

  • RJD ने अपनी सूची 143 उम्मीदवारों की जारी की, जिसमें कांग्रेस से टकराव के संकेत भी थे—यानि “मित्र-विरोधी मुकाबले” हो सकते हैं।

  • कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता को बिहार भेजा है ताकि RJD के साथ सीट-वितरण एवं प्रचार समन्वय को लिया जाए।

  • केंद्रीय नेतृत्व एवं राज्य-स्तर की इकाइयों के बीच ताल-मेल नहीं दिख रहा; इससे प्रचार-विज्ञापन और लोक-सम्पर्क पर असर हो रहा है।

प्रचार अभियान का प्रभावशाली होना तब संभव है जब गठबंधन के सभी प्रमुख घटक एक दिशा में हों, उद्देश्य साझा हो और संदेश एकरूप हो। लेकिन फिलहाल स्थिति उल्टी दिशा में जा रही है—जहाँ गठबंधन के अंदर रिश्ते “दोस्ताना लड़ाई” (friendly fights) के रूप में सामने आ रहे हैं।

इसका परिणाम यह है कि मतदाता के सामने महागठबंधन एक “संघ” के रूप में नहीं, बल्कि “विभिन्न पार्टियों का समूह” नजर आ रहा है। इससे विरोधी मोर्चे को लाभ मिलने का खतरा है।


मेनिफेस्टो पर दूरी : साझा एजेंडा क्यों नहीं बना?

तीसरा बड़ा मुद्दा है मेनिफेस्टो और साझा नीति (manifesto/shared agenda)। चुनावी गठबंधन को सफलता तब मिलती है जब एक स्पष्ट, साझा एजेंडा हो—मतदाताओं को यह पता हो कि गठबंधन क्या बदलाव लाना चाहता है। पर हाल-फिलहाल कुछ गंभीर संकेत मिल रहे हैं कि RJD-कांग्रेस के बीच मेनिफेस्टो पर भी फसाद है।

प्रमुख बिंदु निम्न हैं:

  • बताया गया है कि महागठबंधन मेनिफेस्टो लगभग सोमवार/इसी सप्ताह जारी करेगा, लेकिन रफ़्तार धीमी है।

  • एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मेनिफेस्टो पर सहमति तो है, लेकिन उसे अंतिम रूप देने में “समन्वय” और “नीति-लेखन” दोनों का अभाव है।

  • मीडिया ने लिखा है कि गठबंधन के भीतर “साझा नरेटिव” नहीं बन पाया है—हर दल अपनी दिशा में चल रहा है।

    RJD ने दलित-अल्पसंख्यक-ओबीसी (M-Y वोट बैंक) के लिए नीति तैयार की है, जबकि कांग्रेस अन्य सामाजिक आधारों पर भी अपनी मोहर लगाना चाहती है—इससे एजेंडा में ढलान का अंतर दिख रहा है।

इन हालात में मतदाता के लिए यह भ्रम पैदा हो रहा है कि महागठबंधन क्या नया लेकर आ रहा है? क्या यह सिर्फ विरोधी मोर्चा बन कर रह गया है या फिर परिवर्तन की दिशा में चलने वाला गठबंधन? जब ध्वनि स्पष्ट नहीं होती, तो भरोसा टूटा हुआ लगता है।


क्यों बनी ये दरारें?

विगत कुछ दशकों से बिहार की राजनीति में गठबंधन-राजनीति आम हो गई है, लेकिन इस बार की दरारें विशेष हैं। इसके पीछे कई कारण नजर आते हैं:

  1. नेतृत्व और चेहरा-प्रक्षेपण का विवाद
    तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री (CM) चेहरा माना जा रहा है, पर कांग्रेस और अन्य छोटे दल इस प्रस्ताव पर आधिकारिक समर्थन नहीं दे रहे। 
    इस तरह “चेहरा तय नहीं” होना गठबंधन में एक बड़ा कमजोर बिंदु बन गया है।

  2. स्वार्थ और हिस्सेदारी-आँखियाँ
    प्रत्येक घटक दल चाहता है कि उसे ‘ज्यादा सीटें’, ‘ज्यादा प्रचार’ और ‘ज्यादा मंच’ मिले। विशेष रूप से कांग्रेस, अपने संगठन और केन्द्र-विरोधी ऊर्जा के कारण, ज्यादा बैटल-क्षेत्र हासिल करना चाहती है। यही स्वार्थ-भावना गठबंधन को बांटने का कारण बनी।

  3. समय-कमी और निर्णय-दौड़
    चुनाव फाइनल निकट है, लेकिन गठबंधन का सेट-अप, सीट-बंटवारा, उम्मीदवार चयन और मेनिफेस्टो तैयारी समय पर नहीं हो पाया। इस वजह से ताल-मेल और रणनीति पीछे रह गई।

  4. स्थानीय राजनीति का दबाव
    उपरोक्त सभी दलों को स्थानीय स्तर पर जात-समूह, प्रत्याशी अपेक्षाएँ, कार्यकर्ता दबाव और राज्य-अंदर के समीकरणों से निपटना पड़ रहा है, जिससे केंद्र-नेताओं की रणनीति प्रभावित हो रही है।


संभावित प्रभाव : गठबंधन को क्या-क्या झेलना पड़ सकता है?

उपरोक्त दरारों के चलते महागठबंधन को कुछ प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है:

  • वोट काटने का खतरा: जब गठबंधन दल एक ही सीट पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हों, तो वोट बैंक विभाजित होगा, जिससे राष्ट्रीय जनवादी गठबंधन (NDA) को फायदा मिल सकता है।

  • छवि-संघटन की कमजोरी: बाहर के मतदाता और मीडिया महागठबंधन को ‘बिखरे’ स्वरूप में देख रहे हैं, जिससे उसे “सशक्त विकल्प” के रूप में प्रस्तुत करना मुश्किल हो सकता है।

  • प्रचार-सामग्री एवं संसाधन-व्यय में असमंजस्य: जब महागठबंधन के भीतर प्रचार दिशा अलग-अलग होगी, संसाधनों का उपयोग कम असरकारक होगा, और प्रभाव कम होगा।

  • मेनिफेस्टो का प्रभाव कम होना: यदि साझा एजेंडा स्पष्ट नहीं हुआ, तो मतदाता को यह लगेगा कि गठबंधन में सिर्फ विरोध तो है, प्रस्ताव नहीं—जिसका परिणाम बहस के बजाय भूमिका कम बन सकती है।


क्या इससे कुछ सकारात्मक अवसर भी बन सकते हैं?

हालाँकि इन चुनौतियों से महागठबंधन कमजोर दिख रहा है, लेकिन इसे अवसरों में बदलना भी संभव है—यदि रणनीति ठीक की जाए।

  • गठबंधन जल्द-से-जल्द सीट-साझा को फाइनल करे, “friendly fights” को खत्म करे, और एक स्पष्ट “हम एक हैं” का संदेश दे। विलंब ने नकारात्मक छवि दी है, इसलिए समय से प्रतिक्रिया जरूरी है।

  • प्रचार अभियान को एक रूप देना होगा: चाहे RJD हो या कांग्रेस, साझा मंच, साझा एवं सरल संदेश और साझा लक्ष्य लोगों के सामने होना चाहिए।

  • मेनिफेस्टो को सार्वजनिक-रूप से साझा करें—विशेष रूप से सामाजिक न्याय, रोजगार, महिलाओं-युवा उत्थान, विकास जैसे लोकप्रिय क्षेत्रों पर फोकस करें।

  • स्थानीय मुद्दों को आधार बनाकर प्रत्येक दल-संघटक की ताकत का इस्तेमाल करें—लेकिन राज्य-स्तर पर “गठबंधन” की छवि को टूटने न दें।

  • मतदाताओं को दिखाएं कि यह सिर्फ विपक्षी मोर्चा नहीं, बल्कि परिवर्तन का ब्लॉक है—जिसका उद्देश्य सिर्फ सत्ता नहीं, पुनः राज्य की दिशा बदलना है।


निष्कर्ष

संक्षिप्त में कहें तो, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन की स्थितियाँ– विशेषकर RJD और कांग्रेस के बीच– काफी तनावपूर्ण हैं। सीट-साझा लड़ाई ने पहले मोर्चा खोला; उसके बाद प्रचार में असमंजस्य आगे बढ़ा; और अब मेनिफेस्टो-विवाद ने इस गठबंधन की रणनीतिक कमजोरी उजागर की है।

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