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Gen-Z आंदोलन के बीच बालेन शाह ने सुशीला कार्की का नाम आगे बढ़ाया

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इस समय एक नेपाल राजनीतिक संकट और सामाजिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे और जन-ज़ेड (Gen-Z) आंदोलन द्वारा उत्पन्न विशाल प्रदर्शन के बीच, देश एक नए अंतरिम सरकार की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहा है। इसी बीच, काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को नेपाल की अंतरिम सरकार का नेतृत्व सौंपने की मांग की है। इस लेख में हम इस प्रस्ताव की पृष्ठभूमि, कारण, संभावित चुनौतियाँ और राजनैतिक मायने का विश्लेषण करेंगे।


सुशीला कार्की कौन हैं?

सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं।

उनका कार्यकाल जून 2016 से जून 2017 तक रहा। उनके न्यायिक करियर में उन्होंने विशेष न्यायिक मामलों, लोकतांत्रिक अधिकारों और लैंगिक समानता के मामलों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

2017 में उन पर महाभियोग का प्रस्ताव आया था, जिसमें उन पर सरकार के कामकाज में दखल देने के आरोप लगे थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रस्ताव को वापस ले लिया।


बालेन शाह कौन हैं?

  • बालेन शाह (Balendra “बालेन” शाह) काठमांडू के मेयर हैं। अपने आप में एक युवा नेता, इंजीनियर, सामाजिक कार्यकर्ता और रैप आर्टिस्ट भी रहने वाले बालेन शाह जनता और विशेषकर युवा वर्ग में लोकप्रिय हैं। उनका सार्वजनिक जीवन पारदर्शिता, मातदाताओं के हितों की रक्षा और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे स्वयं अंतरिम सरकार के नेतृत्व की इच्छा नहीं रखते, क्योंकि यह सत्ता अस्थायी है; उनका यह मानना है कि अंतरिम सरकार का काम नए चुनाव करवाना और देश को नया जनादेश देना होना चाहिए।


जन-ज़ेड आंदोलन और नेपाल की वर्तमान स्थिति

नेपाल में Gen-Z के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए हैं, जिसमें युवा वर्ग, छात्र संगठन और नागरिक समाज सक्रिय हैं।

ये प्रदर्शन भ्रष्टाचार, सरकार द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग, लोकतांत्रिक अधिकारों व नागरिक स्वतंत्रता की कमी, और सत्ता परिवर्तन की मांग से प्रेरित हैं।

हिंसा की घटनाएं, नुकसान और जीवन-घटक बाधाएं हुई हैं, और इस बीच सरकार के खिलाफ जन-आक्रोश बढ़ा है। जनता चाहते हैं कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को त्वरित एवं शांतिपूर्ण तरीके से बहाल किया जाए।


बालेन शाह ने सुशीला कार्की को प्रमुख बनाने की मांग की: क्या कहा गया?

काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने सार्वजनिक रूप से आग्रह किया है कि सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का नेतृत्व सौंपा जाए।    उन्होंने युवाओं सहित सभी नेपालियों से धैर्य बनाए रखने की अपील की है और कहा है कि वर्तमान समय में जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए

बालेन शाह ने राष्ट्रपति से भी आग्रह किया है कि संसद को अविलंब भंग किया जाए ताकि अंतरिम सरकार स्थिर हो सके और चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सके।

उन्होंने यह बताया कि वे खुद इस भूमिका में नहीं आना चाहते क्योंकि वह चाहते हैं कि सत्ता आने वाली हो चुनावों के माध्यम से, न कि मात्र अस्थायी पदों के द्वारा।



इस मांग के कारण और तर्क

1. नेतृत्व की इमेज और विश्वसनीयता
सुशीला कार्की ने न्यायपालिका में एक प्रतिष्ठित करियर बनाया है और न्याय, पारदर्शिता व संवैधानिक मूल्यों के लिए लड़ाई लड़ी है। ऐसे गुण उन्हें अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए उपयुक्त बनाते हैं।

जन-ज़ेड आंदोलन की मांग
युवा आंदोलनकारियों ने सुशीला कार्की का नाम प्रस्तावित किया है क्योंकि उन्हें जनता के बीच भरोसा है, और वे राजनीतिक दलों से स्वतंत्र दृष्टिकोण लाने की उम्मीद रखते हैं।

  1. राजनीतिक वैकल्पिक समाधान
    वर्तमान राजनीतिक दलों में झगड़े और असंतोष की स्थिति ऐसे समय में एक तटस्थ और संतुलित नेतृत्व की आवश्यकता है। ऐसा नेता जो राजनीतिक हस्तक्षेप से ज्यादा संवैधानिक और न्यायिक मूल्यों पर आधारित हो। सुशीला कार्की इस रूप में ऐसी भूमिका निभा सकती हैं।

  2. शांति, व्यवस्था और नई शुरुआत की संभावना
    अंतरिम सरकार का लक्ष्य होगा देश की व्यवस्था बहाल करना, हिंसा को रोकना, लोकतंत्र के लिए नया माहौल तैयार करना और फिर नए विकल्प के लिए चुनाव कराना।


संभावित चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

कानूनी औपचारिकताएँ: सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन आवश्यक होगा। संसद भंग करना, राष्ट्रपति की सहमति, और अन्य राजनीतिक दलों की सहमति जैसे कदम समय ले सकते हैं। राजनीतिक दलों का विरोध: नेपाल में अभी भी राजनीतिक दलों का प्रभाव मजबूत है। कई दल इस प्रस्ताव का विरोध कर सकते हैं क्योंकि इससे उनकी शक्ति कम हो सकती है।

अस्थिरता की आशंका: अंतरिम सरकार यदि सिर्फ अस्थायी कदमों तक सीमित रह जाए, तो सत्ता त्रिकोण (military, युवा आंदोलन, राजनेता) के बीच टकराव बने रह सकते हैं। यदि पारदर्शिता, न्याय एवं लोकतंत्र की बहाली में देरी हुई, तो जनता का भरोसा टूट सकता है।

स्थिर नेतृत्व की कमी: अंतरिम सरकार का नेतृत्व एक तरह से “सेतु” जैसा काम करेगा — वर्तमान समस्याओं को सुलझाना, नए चुनावों की तैयारी करना, लेकिन लंबे समय तक सत्ता चलाने की योजना नहीं होगी। परंतु समय रहते चुनाव न हुए तो यह व्यवस्था भी विवादों में फँस सकती है।


राजनैतिक और जनतांत्रिक मायने

सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने की मांग यह प्रतीक है कि जनता न्यायपालिका एवं नैतिक नेतृत्व की ओर आँखें गड़ाए है। युवा वर्ग, विशेषकर Gen-Z, राजनीति में पारदर्शिता, जवाबदेही और परिवर्तन चाहते हैं।

यह घटना दिखाती है कि नेपाल में जनता अब “राजनीतिज्ञों के पार” सोचने लगी है — वे सिर्फ राजनीतिक दलों या गुटों में नहीं देख रहे बल्कि व्यक्तिगत गुण, ईमानदारी, संस्थागत विश्वास और न्यायिक नेतृत्व में भरोसा कर रहे हैं।

यदि यह प्रस्ताव सफल होता है तो यह नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया मोड़ हो सकता है — जहाँ न्यायपालिका व नागरिक समाज के बीच संतुलन बनते हुए अस्थायी शासन से चुनाव-आधारित जनादेश की ओर बढ़ा जाए।


निष्कर्ष

बालेन शाह ने सुशीला कार्की को नेपाल सरकार का प्रमुख बनाने की मांग की” इस वाक्य में निहित है एक बड़ी राजनीतिक मांग और विकल्प — जो नेपाल के वर्तमान संकट, जन-ज़ेड आंदोलन और बदलाव की चाहत से उपजी है।

सुशीला कार्की एक ऐसे नेतृत्वकर्ता हैं जिनकी न्यायपालिका में प्रतिष्ठा है और जिन्हें जनमानस में विश्वास है। बालेन शाह ने उनका नाम प्रस्तावित कर समाज को यह संदेश दिया है कि नेपाल को अस्थायी नेतृत्व की जरूरत है जो निष्पक्ष, पारदर्शी और लोकतांत्रिक हो।

हालाँकि, समय और प्रक्रिया महत्वपूर्ण हैं। संसद की भंग, कानूनी औपचारिकताएँ, राजनीतिक दलों की भागीदारी और युवाओं की एकता — ये सभी कारक इस प्रस्ताव को सफल या विफल बना सकते हैं। यदि ये किनारे संभाल कर काम किया जाए, तो यह नेपाल के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है।

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