समस्तीपुर के छात्रों का शिक्षा के प्रति संघर्ष
बिहार के समस्तीपुर जिले में हाल ही में एक दिलचस्प लेकिन गंभीर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। यहां के छात्रों ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के स्थानीय विधायक के खिलाफ नारेबाजी करते हुए एक अनोखी मांग रखी — “Public Library की स्थापना”।
यह आंदोलन सोशल मीडिया से लेकर ज़मीन तक तेजी से फैल रहा है और शिक्षा व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
Public Library की मांग आखिर क्यों?
समस्तीपुर जिले में बड़ी संख्या में विद्यार्थी स्नातक, प्रतियोगी परीक्षाओं और सरकारी नौकरियों की तैयारी करते हैं। लेकिन जिले में उचित पब्लिक लाइब्रेरी और स्टडी स्पेस की भारी कमी है।
छात्रों का कहना है कि—
- समस्तीपुर के छात्रों का शिक्षा के प्रति संघर्ष
- बिहार के समस्तीपुर जिले में हाल ही में एक दिलचस्प लेकिन गंभीर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। यहां के छात्रों ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के स्थानीय विधायक के खिलाफ नारेबाजी करते हुए एक अनोखी मांग रखी — “Public Library की स्थापना”।यह आंदोलन सोशल मीडिया से लेकर ज़मीन तक तेजी से फैल रहा है और शिक्षा व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
- Public Library की मांग आखिर क्यों?
- विधायक के कार्यक्रम में छात्रों ने किया प्रदर्शन
- विरोध की जड़ में क्या है शिक्षा संसाधनों की कमी
- सोशल मीडिया पर छाया आंदोलन
- विधायक की सफाई: ‘मुद्दा राजनीतिक नहीं, विकास का है’
- स्थानीय प्रशासन का रुख
- छात्रों की पहल बनी मिसाल
- बिहार में शिक्षा संसाधनों की स्थिति
- शिक्षाविदों की राय
- भविष्य की उम्मीदें और आगे की राह
- निष्कर्ष: एक नई दिशा में उठा कदम
“सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर गिरा हुआ है, और निजी संस्थान महंगे हैं। ऐसे में अगर एक सार्वजनिक पुस्तकालय (Public Library) की व्यवस्था हो जाए, तो गरीब और मध्यम वर्गीय छात्रों को बहुत सहूलियत मिलेगी।”
विधायक के कार्यक्रम में छात्रों ने किया प्रदर्शन
घटना के अनुसार, BJP विधायक जब एक स्थानीय कार्यक्रम में पहुंचे, तो वहां उपस्थित छात्रों ने नारेबाजी शुरू कर दी —
“लाइब्रेरी दो, शिक्षा बचाओ”,
“पढ़ने का अधिकार हमारा है” जैसे नारों से पूरा माहौल गूंज उठा।
कई छात्रों ने हाथों में तख्तियां लेकर अपनी मांगों को सामने रखा। इस दौरान पुलिस को भी बीच-बचाव करना पड़ा ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे।
विरोध की जड़ में क्या है शिक्षा संसाधनों की कमी
समस्तीपुर जिला बिहार के पुराने शिक्षा केंद्रों में से एक रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां की शैक्षणिक स्थिति चिंताजनक हो गई है।
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जिले में 10 लाख से अधिक की छात्र आबादी है,
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लेकिन सार्वजनिक पुस्तकालयों की संख्या बेहद कम,
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कई गांवों में तो एक भी पब्लिक लाइब्रेरी नहीं है।
छात्रों का कहना है कि सरकार और जनप्रतिनिधि सिर्फ वादे करते हैं, लेकिन ग्राउंड लेवल पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
सोशल मीडिया पर छाया आंदोलन
इस आंदोलन को छात्रों ने सोशल मीडिया पर भी ट्रेंड बना दिया।
#SamastipurLibraryDemand और #StudyForAll जैसे हैशटैग ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर वायरल हो गए।
कई स्थानीय पत्रकारों और शिक्षकों ने भी छात्रों का समर्थन किया और कहा कि —
“अगर बिहार शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता है, तो ऐसी मांगों को दबाने के बजाय सुनना चाहिए।”
विधायक की सफाई: ‘मुद्दा राजनीतिक नहीं, विकास का है’
जब विधायक से इस विरोध पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि—
“हम छात्रों की मांगों का सम्मान करते हैं। यदि जिला प्रशासन उचित प्रस्ताव लाएगा तो पब्लिक लाइब्रेरी बनाने में हम पूरा सहयोग करेंगे। यह मामला राजनीति से नहीं, विकास से जुड़ा है।”
हालांकि छात्रों का मानना है कि यह केवल “आश्वासन की राजनीति” है और उन्हें तब तक सड़कों पर रहना होगा जब तक कि लाइब्रेरी की नींव नहीं रखी जाती।
स्थानीय प्रशासन का रुख
समस्तीपुर जिला प्रशासन ने छात्रों से संवाद करने का आश्वासन दिया है।
डीएम कार्यालय की ओर से बयान आया है कि वे “स्थानीय जरूरतों के अनुसार सार्वजनिक लाइब्रेरी की संभावनाओं की जांच करेंगे।”
यदि भूमि और बजट की स्वीकृति मिलती है, तो इसे आगामी विकास योजनाओं में शामिल किया जा सकता है।
छात्रों की पहल बनी मिसाल
समस्तीपुर के छात्रों की यह पहल अब आसपास के जिलों जैसे दरभंगा, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर में भी चर्चा का विषय बन चुकी है।
कई जगहों पर छात्र संगठनों ने भी ‘जन पुस्तकालय अभियान’ (Public Library Campaign) शुरू किया है।
इससे साफ है कि यह आंदोलन अब केवल एक जिले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि एक राज्यव्यापी शिक्षा आंदोलन का रूप ले सकता है।
बिहार में शिक्षा संसाधनों की स्थिति
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बिहार में सरकारी पुस्तकालयों की संख्या अनुपातिक रूप से बहुत कम है।
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कई जिलों में पुराने पुस्तकालय बंद पड़े हैं या उनमें किताबें नहीं हैं।
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डिजिटल संसाधन भी छात्रों की पहुंच से दूर हैं, क्योंकि इंटरनेट और बिजली की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं।
इन्हीं कारणों से छात्र खुद आगे आकर सार्वजनिक संसाधनों की मांग कर रहे हैं।
शिक्षाविदों की राय
समस्तीपुर कॉलेज के प्रोफेसर राजीव कुमार का कहना है—
“लाइब्रेरी सिर्फ किताबों का संग्रह नहीं होती, यह छात्रों के बौद्धिक विकास की नींव है। जब सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, तो उसे ‘Knowledge India’ की भी सोच रखनी चाहिए।”
उनके अनुसार, हर जिले में कम-से-कम एक आधुनिक सार्वजनिक लाइब्रेरी होना आवश्यक है, जो छात्रों को अध्ययन, शोध और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में सहयोग दे सके।
भविष्य की उम्मीदें और आगे की राह
अब सबकी नजर इस बात पर है कि क्या वास्तव में समस्तीपुर में Public Library की स्थापना होगी या यह मुद्दा अन्य राजनीतिक घोषणाओं की तरह ठंडा पड़ जाएगा।
छात्रों ने साफ कहा है कि वे इस बार चुप नहीं बैठेंगे।
उनकी मांग है—
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समस्तीपुर शहर में एक आधुनिक सार्वजनिक पुस्तकालय का निर्माण,
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गांवों में मिनी-लाइब्रेरी केंद्रों की स्थापना,
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डिजिटल रीडिंग ज़ोन और Wi-Fi सुविधा,
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पुस्तकालय का संचालन छात्रों और शिक्षकों की संयुक्त कमेटी द्वारा हो।
निष्कर्ष: एक नई दिशा में उठा कदम
समस्तीपुर के छात्रों का यह विरोध सिर्फ किसी विधायक के खिलाफ नहीं, बल्कि एक समग्र शिक्षा सुधार की पुकार है।
अगर सरकार इस मांग को गंभीरता से लेती है, तो यह बिहार के लिए एक नई दिशा बन सकती है।
“Public Library Movement” को राष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन मिल सकता है, क्योंकि यह मुद्दा हर उस छात्र से जुड़ा है जो ज्ञान की समान पहुंच
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