Reading: महिला सुरक्षा पर सियासत: दुर्गापुर रेप केस में ममता बनर्जी घिरीं, बीजेपी ने किया हमला

महिला सुरक्षा पर सियासत: दुर्गापुर रेप केस में ममता बनर्जी घिरीं, बीजेपी ने किया हमला

johar-jharkhand.com
7 Min Read

महिला सुरक्षा पर सियासत: दुर्गापुर रेप केस में ममता बनर्जी घिरीं

पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में एक निजी मेडिकल कॉलेज की दूसरी वर्ष की एक छात्रा (ओडिशा की रहने वाली) को कथित रूप से सामूहिक दुष्कर्म (gangrape) का शिकार बताया गया। यह घटना शुक्रवार रात उस समय हुई, जब छात्रा एक पुरुष मित्र के साथ खाना खाने गई थी। आरोप है कि कुछ अज्ञात लोग उन्हें रॉड से अगवा कर ले गए, मोबाइल छीन लिया गया और जंगल/वन क्षेत्र में ले जाकर दुष्कर्म किया गया।

पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि अन्य फरार हैं। केस की जांच जारी है और फॉरेंसिक टीम घटनास्थल से सबूत जुटा रही है। इस घटना ने न सिर्फ कानून-व्यवस्था की विषयवस्तु को सियासी आकांक्षाओं से जोड़ दिया, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा एवं लैंगिक संवेदनशीलता पर बड़ी बहस छेड़ दी।


ममता बनर्जी का विवादित बयान

घटना के बाद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ऐसा बयान दिया जिसने विवाद की आग को और हवा दी। उन्होंने कहा कि छात्राएं रात में बाहर न निकलें और खासकर हॉस्टल नियमों का पालन करें। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि इतनी देर रात छात्रा हॉस्टल से बाहर कैसे गई?  इस प्रकार उनके बयान से यह आशय निकलकर सामने आया कि छात्रा की ओर से “गलती” हो सकती है, या उसकी बाहरी गतिविधियों पर सवाल खड़े किए गए।

जब उनका बयान सार्वजनिक रूप से विवादित हुआ, तो ममता ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि उनका बयान मीडिया द्वारा तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया, और वे ऐसे बयान नहीं देना चाहती थीं।


बीजेपी की प्रतिक्रिया: “नारीत्व पर कलंक…”

ममता बनर्जी के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उनका आरोप है कि सीएम ने न केवल संवेदनशील विषय पर अनफिट बयान दिया, बल्कि पीड़िता को दोषारोपण कर “नारीत्व पर कलंक (blot on womanhood)” जैसा शीर्षक बना दिया।

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:

“बेशर्म ममता जी, नारीत्व पर एक कलंक, एक मुख्यमंत्री होने के नाते तो और भी ज़्यादा।”

उनका तर्क था कि सीएम ने पीड़िता को ही दोषी ठहरा दिया और बलात्कार करने वालों की जगह पराजित कर दिया।

बीजेपी ने ममता से इस्तीफे की मांग की है, यह कहते हुए कि एक ऐसी मुख्यमंत्री जो महिला सुरक्षा के समय “लड़की बाहर न जाए” जैसी बातें कहे, उसे राज्य चलाने का नैतिक अधिकार नहीं।

एक अन्य भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि ममता मुख्यमंत्री होते हुए भी पीड़िता को ही दोषी ठहराती हैं और बलात्कारी का बचाव करती हैं।

बीजेपी के दिशा-बल (state) नेताओं ने भी बेतुकी बयानबाज़ी पर तीखा आरोप लगाया। भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल ने इस बयान को “शर्मनाक” करार दिया और कहा कि ममता सरकार महिलाओं के प्रति संवेदनशील नहीं है।


बहस और आलोचनाएँ: संवेदनशीलता, विक्टिम-ब्लेमिंग और राजनीति

इस पूरे विवाद ने कुछ बुनियादी सवाल उठाए:

1. विक्टिम-ब्लेमिंग (पीड़ित को दोष देना)

जब मुख्यमंत्री ही लड़कियों को रात में बाहर न निकलने की सलाह देने लगें, तो यह एक तरह का विक्टिम-ब्लेमिंग की प्रवृत्ति है — उस व्यक्ति को ही दोष दे देना, जो अपराध का शिकार हुआ हो। स्क्रिप्ट यह कहती है कि अगर “लड़की बाहर न गई होती”, तो यह घटना न होती। यह सोच समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिक सुरक्षा की मांगों को कम करती है।

2. जिम्मेदारी किसकी?

राज्य और सरकार की जिम्मेदारी होती है कि जनता सुरक्षित रहे, और कानून-व्यवस्था मजबूत हो। मुख्यमंत्री का काम यह नहीं है कि जनता के व्यवहार को सीमित करे, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर महिला बिना डर के कहीं भी जा सके। रात-दिन, कॉलेज परिसर हो या सार्वजनिक मार्ग — सुरक्षा होनी चाहिए, न कि निर्बंध। ममता का बयान यह संकेत देता है कि राज्य सुरक्षा व्यवस्था में नाकाम रही और वह अब पल्ला झाड़ते हुए लड़कियों को “रात न निकलने” की सलाह दे रही हैं।

3. राजनीतिकरण और सियासी लड़ाई

इस मुद्दे को राजनीतिकरण से नहीं बचाया जा सकता था। बीजेपी ने इसे मौका देखा और ममता और TMC पर हमला बोला कि उन्होंने महिला सुरक्षा को नहीं निभाया। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप चले, इस्तीफा मांग की गई। ऐसा युद्ध समझा जाने लगा कि यह सिर्फ एक सामाजिक घटना नहीं, बल्कि सियासत का हिस्सा बन रहा है — हर दल यह दिखाना चाहता है कि वह महिलाओं की सुरक्षा के लिए गंभीर है।

4. समाज में रूढ़िवादी सोच की पुनर्स्थापना?

अगर सार्वजनिक रूप से यह संदेश दिया जाए कि महिलाओं को रात में बाहर नहीं जाना चाहिए, तो यह एक प्रकार से पितृसत्तात्मक सोच को पुनर्जीवित करता है — “बाहर न निकलो, बेहतर रहेगा।” लेकिन यह तरीका समस्या का हल नहीं है। समस्या अपराधियों, सुरक्षा व्यवस्था, पुलिस प्रणाली और सामाजिक मानसिकता में निहित है। इसे बदलना ज़रूरी है।


निष्कर्ष और सुझाव

इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि:

  • ममता बनर्जी का बयान संवेदनशील सामाजिक स्थिति में असमय और विवादास्पद था।

  • बीजेपी ने इसे खुलेआम ‘नारीत्व पर कलंक’ करार दिया और सीएम के इस्तीफे की मांग की।

  • यह मामला सिर्फ एक अपराध का मामला नहीं, बल्कि लैंगिक असमानता, न्याय व्यवस्था, राजनीतिक लड़ाई और सामाजिक मानसिकता का मुअय्यन है।

अगर इस घटना से कुछ सकारात्मक हो सकता है, तो वह यह कि समाज एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर हो गया कि महिलाओं की सुरक्षा, उनका सम्मान और अच्छा कानून-न्याय व्यवस्था कितनी ज़रूरी है।

मैं इस पर और गहराई से लिख सकता हूं — जैसे कि समाज में इस तरह की घटनाओं की रोकथाम कैसे हो, राज्य सरकारों को क्या कदम उठाने चाहिए आदि। यदि आप चाहें, तो मैं आपके लिए उसी दिशा में एक सुझावात्मक लेख या कमेंटरी लिख सकता हूँ। क्या आप चाहेंगे कि मैं आगे “कैसे सुरक्षित हो महिलाएं” या “राज्य की भूमिका” पर भी लिखूं?

👉 आगे पढ़ें : CRPF हेड कांस्टेबल महेंद्र लश्कर शहीद, चाईबासा में नक्सली मुठभेड़

Share This Article
Leave a Comment