दुलारचंद यादव की हत्या और मोकामा का तनाव
बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का संगम कोई नई बात नहीं है। मोकामा और उसके आसपास का इलाका हमेशा से बाहुबली नेताओं, गैंगस्टरों और सियासी ताकतों के खेल का मैदान रहा है। हाल ही में इसी इलाक़े से एक नाम ने फिर सुर्खियाँ बटोरीं — दुलारचंद यादव, जिन्हें स्थानीय लोग “टाल के राजा” और “गुना टूटल” जैसे उपनामों से जानते थे।
उनकी हत्या ने न सिर्फ बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी, बल्कि उस पुरानी सच्चाई को फिर सामने ला दिया — जहाँ राजनीति और अपराध की लकीरें धुंधली पड़ जाती हैं।
- दुलारचंद यादव की हत्या और मोकामा का तनाव
- दुलारचंद यादव कौन थे?
- मोकामा की राजनीति और बाहुबली परंपरा
- हत्या की कहानी – गोलियों और सियासत की गूंज
- अनंत सिंह और दुलारचंद यादव – टकराव की जड़ें
- “नथुनियां के गुना टूटल ये राजा” – लोकभाषा में प्रतीक
- जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
- राजनीतिक प्रभाव – मोकामा बना केंद्रबिंदु
- बिहार में बाहुबली संस्कृति का नया अध्याय
- निष्कर्ष – सत्ता, संघर्ष और सियासत की सच्चाई
दुलारचंद यादव कौन थे?
दुलारचंद यादव मोकामा के टाल इलाके के रहने वाले थे। शुरुआत में उनका नाम अपराध की दुनिया से जुड़ा, लेकिन वक्त के साथ उन्होंने खुद को “जन नेता” के रूप में स्थापित करने की कोशिश की। वे स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली व्यक्ति थे — पंचायत राजनीति, ज़मीन विवादों और क्षेत्रीय मामलों में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती थी।
एक समय था जब मोकामा में हर दूसरी पंचायत के फैसले में उनका नाम लिया जाता था। कहा जाता है कि टाल क्षेत्र में उनकी “चलती थी”, और लोग उन्हें “राजा” कहकर पुकारते थे।
मोकामा की राजनीति और बाहुबली परंपरा
मोकामा का नाम आते ही अनंत सिंह का ज़िक्र होना स्वाभाविक है। “छोटे सरकार” के नाम से मशहूर अनंत सिंह इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली बाहुबली नेताओं में से एक रहे हैं। लेकिन राजनीति में कोई हमेशा के लिए राजा नहीं होता — नए चेहरे, नए समर्थक और बदलते समीकरण पुराने साम्राज्य को चुनौती देते हैं।
दुलारचंद यादव भी ऐसे ही एक नाम थे जिन्होंने धीरे-धीरे अपने नेटवर्क के ज़रिए इलाके में पकड़ मजबूत की और अनंत सिंह की सत्ता को चुनौती देने लगे।
उनकी यह बढ़ती लोकप्रियता और जन सुराज पार्टी से जुड़ाव ने उन्हें स्थानीय चुनावी राजनीति में एक “गेम चेंजर” बना दिया था।
हत्या की कहानी – गोलियों और सियासत की गूंज
30 अक्टूबर 2025 की शाम को मोकामा विधानसभा क्षेत्र के घोसवरी थाना क्षेत्र में दुलारचंद यादव के काफिले पर हमला हुआ।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पहले गोलियां चलाई गईं, फिर हमलावरों ने गाड़ी से उन्हें कुचल दिया।
यह घटना बिहार विधानसभा चुनाव के बीच हुई, जब पूरा इलाका चुनावी उफान पर था।
हमले की खबर फैलते ही इलाके में तनाव फैल गया।
जन सुराज पार्टी ने आरोप लगाया कि यह “राजनीतिक साजिश” थी, जबकि प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दिए।
पुलिस ने शुरुआती जांच में कई संदेहास्पद व्यक्तियों को हिरासत में लिया, लेकिन घटना के पीछे की साजिश अब भी रहस्य बनी हुई है।
अनंत सिंह और दुलारचंद यादव – टकराव की जड़ें
बाहुबली नेता अनंत सिंह का नाम इस घटना के बाद चर्चा में आया।
दुलारचंद यादव की बढ़ती राजनीतिक पकड़ ने उन्हें सीधे तौर पर अनंत सिंह के प्रभाव क्षेत्र में चुनौती बना दिया था।
जन सुराज पार्टी के टिकट पर सक्रिय रहते हुए, दुलारचंद यादव लगातार ऐसे बयान दे रहे थे जिनसे संकेत मिलता था कि वे “पुराने राज” को खत्म करने के लिए मैदान में हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दुलारचंद यादव की हत्या किसी व्यक्तिगत दुश्मनी का परिणाम नहीं बल्कि “पॉलिटिकल मैसेज” थी —
कि मोकामा की राजनीति में अब भी पुरानी ताकतें सक्रिय हैं।
“नथुनियां के गुना टूटल ये राजा” – लोकभाषा में प्रतीक
यह वाक्य — “नथुनियां के गुना टूटल ये राजा…” — सोशल मीडिया और लोकचर्चा में बहुत लोकप्रिय हुआ।
इसका अर्थ है कि “राजा की ताकत का घमंड टूट गया।”
यह वाक्य दुलारचंद यादव की कहानी का प्रतीक बन गया, क्योंकि उन्होंने सत्ता के खिलाफ बगावत की थी, पर आखिरकार उसी सत्ता ने उन्हें कुचल दिया।
मोकामा और टाल क्षेत्र में यह कहावत अब एक तरह की चेतावनी बन गई है —
कि राजनीति में ताकत के खेल में कोई स्थायी “राजा” नहीं होता।
जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
दुलारचंद यादव की मौत के बाद सोशल मीडिया पर गुस्सा और दुख की लहर दौड़ गई।
लोगों ने बिहार की कानून व्यवस्था और राजनीतिक हिंसा पर सवाल उठाए।
ट्विटर (अब X) और फेसबुक पर #JusticeForDularchandYadav ट्रेंड करने लगा।
कई लोगों ने यह भी लिखा कि “अगर चुनाव प्रचार के बीच कोई नेता सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता का क्या होगा?”
स्थानीय लोगों का कहना है कि दुलारचंद यादव गरीबों के बीच लोकप्रिय थे।
वे टाल क्षेत्र में सड़कों, नहरों और किसानों की समस्याओं को लेकर अक्सर प्रशासन से भिड़ते रहते थे।
राजनीतिक प्रभाव – मोकामा बना केंद्रबिंदु
दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा विधानसभा क्षेत्र बिहार चुनाव 2025 का सबसे हॉटस्पॉट बन गया।
सभी प्रमुख दलों ने यहाँ अपनी रणनीति बदलनी शुरू की।
जन सुराज पार्टी ने इसे “राजनीतिक शहादत” बताया, जबकि राजद और जदयू ने इस घटना की निंदा करते हुए दोषियों की गिरफ्तारी की मांग की।
अनंत सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने ऊपर लगे आरोपों को नकारते हुए कहा —
“मेरे खिलाफ राजनीतिक षड्यंत्र रचा जा रहा है। दुलारचंद की मौत से मुझे भी दुख है, लेकिन इसका मेरे परिवार या संगठन से कोई लेना-देना नहीं।”
इस बयान के बाद भी मामला शांत नहीं हुआ।
लोगों ने अनंत सिंह के पुराने रिकॉर्ड का हवाला देते हुए उन्हें घेरना शुरू किया।
राजनीति और अपराध के इस टकराव ने पूरे बिहार की सियासत को हिला दिया।
बिहार में बाहुबली संस्कृति का नया अध्याय
बिहार की राजनीति में “बाहुबली” शब्द दशकों से चलता आ रहा है —
शहाबुद्दीन, आनंद मोहन, सुरजभान सिंह और अनंत सिंह जैसे नाम इस परंपरा का हिस्सा रहे हैं।
दुलारचंद यादव की कहानी इस श्रृंखला की नई कड़ी है।
उन्होंने कोशिश की थी कि अपराध से निकलकर जनता का भरोसा जीतें, लेकिन राजनीति के इस दलदल ने अंत में उन्हें निगल लिया।
निष्कर्ष – सत्ता, संघर्ष और सियासत की सच्चाई
दुलारचंद यादव की हत्या सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत है।
यह दिखाता है कि बिहार के कई इलाकों में अब भी चुनाव लोकतांत्रिक मुकाबला नहीं, बल्कि ताकत का प्रदर्शन बन गए हैं।
दुलारचंद जैसे नेताओं का सफर यह साबित करता है कि “राजा बनना आसान नहीं, और बने रहना उससे भी मुश्किल।”
मोकामा की धरती ने एक और कहानी देखी —
जहाँ गुना टूटल राजा अब इतिहास बन गया, लेकिन उसके पीछे छोड़े सवाल आज भी ज़िंदा हैं —
क्या बिहार कभी उस राजनीति से मुक्त हो पाएगा, जहाँ गोलियाँ चुनावी भाषणों से ज़्यादा असरदार होती हैं?
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