धनतेरस का आध्यात्मिक
धनतेरस, जिसे संस्कृत में धनत्रयोदशी कहा जाता है — “धन” अर्थात् संपत्ति और “त्रयोदशी” अर्थात् तेरहवीं तिथि — दीपावली पर्व की शुरुआत को दर्शाने वाला एक अत्यंत पावन दिन है। यह कृष्ण पक्ष की तेरहवीं तिथि को मनाया जाता है, जो कार्तिक अथवा आश्विन मास में पड़ती है।
इस दिन को विशेष रूप से स्वास्थ्य, समृद्धि और सुरक्षा के लिए पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार में मुख्य रूप से तीन देवताओं — भगवान धन्वन्तरि, दुर्गा / लक्ष्मी माता और यमराज — से संबंध माना जाता है।
भगवान धन्वन्तरि: स्वास्थ्य और आयु के देवता
धनतेरस त्यौहार का एक महत्वपूर्ण पहलू भगवान धन्वन्तरि से जुड़ा है। वे देवताओं के वैद्य (चिकित्सक) हैं और आयुर्वेद के आदि गुरु माने जाते हैं।
समुंद्र मंथन की कथा और धन्वन्तरि का आगमन
हिंदू पुराणों के अनुसार, देवता और असुरों ने अमृत पाने हेतु समुंद्र मंथन (महामंथन) किया। इस मंथन के दौरान जब अमृत और दिव्य वस्तुएँ उत्पन्न हुईं, उसी समय भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए, हाथ में अमृत कलश और आयुर्वेद की ग्रंथ रखे हुए।
इस घटना के समय को ही धनतेरस कहा जाता है, क्योंकि यह “त्रयोदशी” तिथि में हुआ था। इस कारण इस दिन को धन्वन्तरि की पूजा करके स्वास्थ्य-वर्धन एवं रोग मुक्ति की कामना की जाती है।
भारत सरकार ने भी इस संबंध को मान्यता देते हुए २०१६ से धनतेरस को राष्ट्रिय आयुर्वेद दिवस घोषित किया है।
धन्वन्तरि की पूजा से यह संदेश भी मिलता है कि धन (संपत्ति) से बढ़कर मानव जीवन का स्वास्थ्य और जीवन-शक्ति महत्वपूर्ण है।
यमराज और राजा हीमा की कथा: मृत्यु पर विजय
धनतेरस को यमराज (मृत्यु के देवता) से जोड़ने वाली एक प्रसिद्ध कथा है, जो त्यौहार की पौराणिक पृष्ठभूमि को भावनात्मक और धार्मिक दृष्टि से समृद्ध बनाती है।
राजा हीमा और उनका पुत्र
लोककथाओं के अनुसार, हिम नामक एक राजा के पुत्र की कुंडली बताती थी कि वह विवाह के चौथे दिन सांप द्वारा मारा जाएगा। पुत्र की पत्नी ने इस भयावह समय में एक बुद्धिमान योजना बनाई। उन्होंने अपने पति को सोने नहीं दिया, बल्कि रातभर कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने सोने के कमरे के बाहर सोने-चाँदी के आभूषण और धन इकट्ठा किए और किनारे-किनारे दीपक जलाए।
जब यमराज एक सर्प के रूप में उस रात उस घर में आए, तो सोने-चाँदी की चमक और दीपकों की रोशनी ने उनकी दृष्टि को बाधित कर दिया। यमराज उस प्रकाश में चकित हो गए और वे उत्सुकता व मंत्रमुग्ध होकर आभूषणों के ढेर पर बैठ गए। पत्नी की कथा-गीत सुनते हुए उन्होंने प्रतीक्षा की, और मृत्यु का मुहूर्त पूर्ण होने पर वे घर से बिना प्रवेश किये वापस चले गए। इस प्रकार, पुत्र की मृत्यु टल गई।
इस घटना के आधार पर, उस रात को “यमदीपदान” (यम को दीप देना) कहा गया, क्योंकि उस रात दीपक जलाना यमराज को आकर्षित करके मृत्यु से रक्षा करने वाली एक प्रथा बन गई।
इससे यह संदेश मिलता है कि प्रकाश (दीप), समृद्धि (सोने-चाँदी) और जागरूकता (निंद्रा न आने) से बुराई और मृत्यु को रोका जा सकता है। इस लोकशास्त्रीय कथा का मूल उद्देश्य है — जीवन की रक्षा और सकारात्मक ऊर्जा की स्थापना।
देवी लक्ष्मी और धनतेरस: समृद्धि की देवी का आगमन
धनतेरस पर देवी लक्ष्मी की पूजा एक मुख्य अनुष्ठान है। इसका संबंध समुंद्र मंथन की उसी घटना से है जिसमें लक्ष्मी माता भी उत्पन्न हुई थीं।
समुंद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी स्वर्ण पद्म पर बैठकर उत्पन्न हुई थीं — इसी कारण उन्हें धन, वैभव और समृद्धि की देवी माना जाता है।
एक अन्य कथा कहती है कि जब देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर ठहरीं, उन्होंने सादृश्यों (धरती की कामनायें) का आनंद ले लिया और इच्छा होती है कि वे हर वर्ष पृथ्वी पर आएँ। इस क्रम में यह परंपरा बनी कि धनतेरस की शाम को दीप जलाकर और घर को सजाकर उन्हें आमंत्रित किया जाए।
इस प्रकार, धनतेरस पर दीप, पूजा और वस्तु-क्रय (सोने-चाँदी इत्यादि) करने का उद्देश्य लक्ष्मी माता को आमंत्रित करना और उनके आशीर्वाद से समृद्धि प्राप्त करना है।
पूजा-विधान, अनुष्ठान एवं रीतियाँ
धनतेरस पर पूजा और अनुष्ठान अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थ रखते हैं। नीचे कुछ प्रमुख विधियाँ दी जा रही हैं:
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घर की सफाई और सजावट
धनतेरस से पहले घर की पूरी सफाई, रंग-रोगन, रांगोली और दीप सजाना शुभ माना जाता है। यह एक तरह से अशुद्धि और बुराई को दूर करने का प्रतीक है। -
दीप प्रज्ज्वलन (यमदीपदान)
शाम को घर के मुख्य द्वार और दक्षिण दिशा (यम की दिशा) की ओर दीपक जलाना विशेष महत्व रखता है। इसे यमदीपदान कहा जाता है और माना जाता है कि इसे करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार में किसी अनहोनी की संभावना कम होती है। -
पूजा सामग्री
पूजा के लिए दीपक, गंगाजल, पुष्प, अक्षत (चावल), फल, सुपारी, फलाहार, धूप-दीप, हल्दी-कुंकू आदि सामग्री का उपयोग किया जाता है। पूजा के दौरान लक्ष्मी–गणेश–कुबेर की स्तुति, संस्कृत‡ मंत्र और आरती की जाती है। -
धन्वन्तरि पूजा
इस दिन स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना से भगवान धन्वन्तरि का विशेष पूजन किया जाता है। उन्हें औषधि, तुलसी और शंख आदि अर्पित किया जाता है। -
नव वस्तु क्रय (सोना, चाँदी, बर्तन आदि)
धनतेरस को सौभाग्यशाली दिन माना जाता है नए धातुओं और उपयोगी वस्तुओं की खरीदारी के लिए। यह मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तु सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक बनी रहती है। -
निवेदन और मंत्रोच्चारण
पूजा के दौरान विशेष मंत्र, जैसे “ॐ धन्वন্তरये अमृत कलश हस्ताय…” आदि, उच्चारित किए जाते हैं। -
प्रसाद वितरण एवं भेंट-वटिका
पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद बाँटा जाता है। साथ ही घर में सब लोग नए वस्त्र या उपहार एक-दूसरे को देते हैं। इस दिन उपहार देना शुभ माना जाता है।
धनतेरस का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
धनतेरस सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश छिपे हैं:
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स्वास्थ्य एवं जीवन-रक्षा की महत्ता — धन्वन्तरि पूजा यह याद दिलाती है कि धन-सम्पत्ति से पूर्व स्वास्थ्य सबसे बड़ी पूँजी है।
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प्रकाश का प्रतीक — दीपक का जलना अज्ञान और अंधकार को दूर करने का प्रतीक है।
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समय और जागरूकता — राजा हीमा की कथा हमें सिखाती है कि समय एवं जागरूकता से विपत्ति टाली जा सकती है।
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धन संचय और विवेकपूर्ण उपयोग — नए वस्त्र या धातु खरीदना इस विश्वास को दर्शाता है कि सकारात्मक ऊर्जा और शुभ कार्यों के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
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सामूहिकता और सामाजिक सौहार्द — परिवार और समाज में मिल-जुल कर पूजा करना, उपहार आदान-प्रदान करना सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है।
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