झारखंड में कुड़मी समाज का रेल रोको आंदोलन: कारण, घटनाएँ और भविष्य की संभावनाएँ
20 सितंबर 2025 को, झारखंड में कुड़मी समाज के लोगों ने एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन शुरू किया जिसमें करीब 40 रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनें रोकी गईं। इस आयोजन का लक्ष्य है कि कुड़मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में शामिल किया जाए। इस आंदोलन ने केवल यात्रियों को प्रभावित नहीं किया बल्कि राज्य सरकार, प्रशासन और रेल विभाग को भी चुनौती दी है। यह लेख इस आंदोलन के कारणों, घटनाओं, प्रभाव और संभावित समाधानों का विश्लेषण करेगा।
- झारखंड में कुड़मी समाज का रेल रोको आंदोलन: कारण, घटनाएँ और भविष्य की संभावनाएँ 20 सितंबर 2025 को, झारखंड में कुड़मी समाज के लोगों ने एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन शुरू किया जिसमें करीब 40 रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनें रोकी गईं। इस आयोजन का लक्ष्य है कि कुड़मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में शामिल किया जाए। इस आंदोलन ने केवल यात्रियों को प्रभावित नहीं किया बल्कि राज्य सरकार, प्रशासन और रेल विभाग को भी चुनौती दी है। यह लेख इस आंदोलन के कारणों, घटनाओं, प्रभाव और संभावित समाधानों का विश्लेषण करेगा।
आंदोलन का पृष्ठभूमि और मुख्य मांगें
किन कारणों से आंदोलन शुरू हुआ
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ST श्रेणी से बाहर होना: कुड़मी समाज का दावा है कि आजादी से पहले या भारत के विभाजन से पहले अक्सर उन्हें आदिवासी या ST-समूह के तहत माना जाता था, परंतु 1951 की जनगणना के बाद उन्हें सूची से हटा दिया गया।
सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: खेती-किसानी, प्राकृतिक संसाधनों में हिस्सेदारी, सरकारी नौकरी-शिक्षा में आरक्षण, भूमि से जुड़े अधिकार आदि क्षेत्रों में कुड़मी समाज को अन्य आदिवासी समुदायों या पिछड़े समाजों की अपेक्षा कम अवसर प्राप्त हुए हैं।
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भाषाई और सांस्कृतिक पहचान: एक अन्य मांग है कि कुर्माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए, जिससे भाषा संसाधनों और सांस्कृतिक मान्यता को अधिकारिक स्तर पर मिले।
आंदोलन की रणनीति
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रेल रोको / रेल टेका आंदोलन: रेलवे ट्रैक पर बैठना, ट्रेनें रोकना ताकि सरकारी ध्यान आकर्षित हो।
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बहुवटा समर्थन: राजनीतिक दलों का समर्थन, सामाजिक संगठनों की भागीदारी, प्रदर्शनकारियों द्वारा पारंपरिक परिधान और स्थानीय सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग आदि।
घटना-चक्र: कहाँ, कैसे और कितनी ट्रेनें प्रभावित हुईं
प्रभावित क्षेत्र
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इस आंदोलन का असर झारखंड के 40 रेलवे स्टेशनों पर देखा गया। इनमें गिरिडीह, चक्रधरपुर, बोकारो, मुरी, टाटीसिल्वे इत्यादि स्टेशन शामिल हैं।
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सरायकेला-खरसांवा जिले के सोनी स्टेशन पर विशेष जोर रहा, जहाँ हजारों की संख्या में लोग ट्रैक जाम कर बैठे।
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कई स्थानों पर प्रशासन ने धारा 144 लागू की, रेलवे स्टेशन और ट्रैक के आसपास कुछ दूरी (300 मीटर जैसे) निषेध क्षेत्र घोषित किया गया।
ट्रेन सेवाओं पर प्रभाव
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रद्दियाँ, रूट में बदलाव, शॉर्ट टर्मिनेशन / शुरुआती स्टेशन से परिचालन जैसी परेशानियाँ पैदा हुईं।
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उदाहरण के लिए: धनबाद-समस्तीपुर एक्सप्रेस, पटना-बरकाकाना एक्सप्रेस, आसनसोल-हटिया एक्सप्रेस आदि से संबंधित ट्रेनें प्रभावित हुईं।
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कुल मिलाकर पूर्व रेलवे, दक्षिण पूर्व रेलवे और पूर्व मध्य रेलवे की करीब 69 ट्रेनें प्रभावित बतायी जा रही हैं। इनमें से कई पूरी तरह रद्द हुईं, कुछ वैकल्पिक मार्ग से चलीं, कुछ यात्राएँ आंशिक रूप से ही पूरी हुईं।
प्रशासन और सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया
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प्रशासन ने निषेधाज्ञाएँ, पुलिस व आरपीएफ का तैनात होना, संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा बढ़ाना आदि कदम उठाए।
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ट्रैक के आसपास के 300 मीटर के क्षेत्र में निषेधाज्ञा लागू करना, रेलवे स्टेशन परिसरों पर विशेष सतर्कता।
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अधिकारियों ने कहा है कि यात्रियों की सुरक्षा, ट्रेन परिचालन को यथोचित वैकल्पिक मार्ग से सुचारू करना और आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की कोशिश जारी है।
आंदोलन के प्रभाव
अल्पकालिक
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यात्रियों को बड़े स्तर पर असुविधा हुई — कई लोग समय पर परीक्षा, काम या अन्य योजनाएँ प्रभावित हुईं।
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रेल परिचालन की अनियमितता, ट्रेनों के रद्द होने या बीच में समाप्त होने से आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ा।
दीर्घकालिक संभावनाएँ
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यदि आंदोलनकारियों की मांगों पर गौर किया जाए, तो ST की श्रेणी मिलने से शिक्षा, सरकारी नौकरी, सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ जैसे क्षेत्रों में लाभ होगा।
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भाषा व सांस्कृतिक मान्यता मिलने से सामुदायिक आत्म-सम्मान, पहचान तथा सामाजिक विकास को बल मिल सकता है।
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सरकार-नीति निर्माताओं को अब यह दिखा है कि समुदाय की अपेक्षाएँ गंभीर हैं; इससे भविष्य में समावेशी नीतियाँ बनने की संभावना है।
चुनौतियाँ और विवादास्पद पहलू
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लॉजिक और प्रमाण: सरकार ओर विरोधी दल पूछ रहे हैं कि कुड़मी समाज के आदिवासी इतिहास और प्रमाण कितने मजबूत हैं; जनगणना-पूर्व और इतिहास-दस्तावेज़ों की भूमिका महत्वपूर्ण बनेगी।
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परिणामों की असंगति: ST सूची में शामिल होने पर अधिकारों की विलवलीकरण की प्रक्रिया जटिल है, न्यायालय, राज्य तथा केंद्र सरकार के बीच कानूनी मसले उठेंगे।
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सामाजिक एवं राजनीतिक प्रतिक्रिया: दूसरे समुदायों में डर या असहमति हो सकती है कि आरक्षण की कैट-ऑफ बढ़ेगी, संसाधन बाँटना होगा; राजनीतिक पार्टियों का रुख और विरोध भी सम्भव है।
संभावित समाधान और आगे की राह
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संवाद व वार्ता: राज्य सरकार और केंद्र सरकार को कुड़मी समाज के प्रतिनिधियों से तुरंत संवाद स्थापित करना चाहिए, ताकि मांगों की समीक्षा संभव हो सके।
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इतिहास एवं प्रमाणों की जांच: पुरानी जनगणना डेटा, इतिहास-प्ले ऑफ दस्तावेज, सामाजिक अनुसंधानों से यह निर्धारित करना चाहिए कि कुड़मी समुदाय के आदिवासी स्वरूप के मामले में किन मानदंडों पर खरा उतरता है।
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न्यायिक प्रक्रिया: यदि आवश्यक हो, तो कोर्ट या आयोग के माध्यम से अधिकारों के मुद्दों को हल किया जाए।
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समेकित सामाजिक विकास योजना: शिक्षा, स्वास्थ्य, भाषा संरक्षण, सांस्कृतिक संवर्धन के कार्यक्रमों को शुरू करें ताकि समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति मजबूत हो।
निष्कर्ष
कुड़मी समाज का यह रेल रोको आंदोलन झारखंड के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक चेतावनी है। यह दिखाता है कि किस तरह कोई समुदाय अपने पहचान, सामाजिक न्याय और अधिकारों के लिए दृढ़ता से मैदान में आ सकता है। यदि सरकार समय रहते सकारात्मक कदम उठाए, तो इस संघर्ष को एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाधान की दिशा में मोड़ा जा सकता है। अन्यथा, सामाजिक टकराव और असमंजस्य की स्थिति बनी रह सकती है, जो राज्य के विकास और शांति-साधारण जीवन के लिए हानिकारक होगी।
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