हेमंत सोरेन, झारखंड की राजनीति का एक ऐसा नाम है जो संघर्ष, साहस और दृढ़ता का प्रतीक है। चुनाव हारने से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चार बार शपथ लेने तक, उनका सफर प्रेरणादायक और अद्वितीय है।
प्रारंभिक जीवन और राजनीतिक शुरुआत
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक और जननेता शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन को राजनीतिक विरासत तो मिली, लेकिन उनका सफर आसान नहीं था। शुरुआत में उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन को पार्टी का उत्तराधिकारी माना जाता था। लेकिन 2005 में हेमंत ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा। उन्होंने दुमका से चुनावी मैदान में कदम रखा, लेकिन स्टीफन मरांडी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इस हार के साथ उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई।
पहली सफलता और पार्टी में जगह
2005 की हार के बाद हेमंत ने स्थानीय स्तर पर जनता से जुड़ने पर ध्यान दिया। 2009 में जेएमएम ने उन्हें राज्यसभा भेजा, जहां उन्होंने अपनी राजनीतिक सूझबूझ को और निखारा। इसी साल उन्होंने फिर से दुमका विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और इस बार जीत हासिल की। यह जीत न केवल विधानसभा में उनकी एंट्री थी, बल्कि पार्टी में उनकी अहमियत को भी स्थापित करती थी।
राजनीतिक अस्थिरता के बीच नेतृत्व
2010 में झारखंड में भाजपा और जेएमएम के गठबंधन की सरकार बनी। इस सरकार में अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने और हेमंत ने उपमुख्यमंत्री का पद संभाला। लेकिन स्थानीय नीति जैसे मुद्दों पर मतभेद के कारण यह गठबंधन टूट गया।
2013 में कांग्रेस के समर्थन से हेमंत पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, उनका कार्यकाल केवल 18 महीने का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने विकास योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया और विभिन्न समुदायों का विश्वास जीता।
2014 की हार और नई शुरुआत
2014 के विधानसभा चुनावों में हेमंत को बड़ा झटका लगा। उन्होंने दो सीटों, दुमका और बरहेट से चुनाव लड़ा। दुमका में उन्हें भाजपा की डॉ. लुईस मरांडी से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन बरहेट सीट पर उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद, पांच साल तक वह नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम करते रहे।
इस दौरान उन्होंने झामुमो के आधार को पारंपरिक आदिवासी क्षेत्रों से आगे बढ़ाकर अन्य समुदायों तक पहुंचाने का काम किया। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर उनका फोकस पार्टी को और मजबूत करता गया।
2019 में धमाकेदार वापसी
2019 के विधानसभा चुनावों में हेमंत सोरेन ने महागठबंधन का नेतृत्व करते हुए भाजपा को करारी शिकस्त दी। उनके विकास और स्थानीय अधिकारों के वादों ने जनता के बीच गहरी छाप छोड़ी। इस जीत के साथ वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बने।
चौथी बार मुख्यमंत्री और मजबूत होती विरासत
2024 में, हेमंत सोरेन ने चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। यह उपलब्धि झारखंड की राजनीति में उनकी अमिट छाप को दर्शाती है। उनके नेतृत्व में झामुमो अब राज्य की सबसे मजबूत पार्टी बन चुकी है।
आदिवासी अधिकार और सतत विकास के समर्थक
हेमंत सोरेन ने हमेशा आदिवासी सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी है। फूलो झानो आशीर्वाद अभियान जैसी योजनाओं ने महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत किया।
खनन और औद्योगिकीकरण के चलते पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर भी वह मुखर रहे हैं। उनकी सरकार की नीतियां भूमि अधिकार, वन संरक्षण और स्थानीय रोजगार को संतुलित करने पर केंद्रित रही हैं।
झारखंड के भविष्य का विजन
हेमंत सोरेन झारखंड को सतत विकास, समानता और सामाजिक सौहार्द का आदर्श राज्य बनाना चाहते हैं। उनकी नीतियां आधुनिक शासन और आदिवासी संस्कृति व परंपराओं के प्रति सम्मान का मेल हैं।
दो दशकों की राजनीतिक यात्रा में हेमंत सोरेन ने न केवल अपनी पार्टी झामुमो को अपराजेय बनाया है, बल्कि खुद को झारखंड के सबसे प्रभावशाली नेताओं में स्थापित किया है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि साहस और दूरदर्शिता से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।